गंडकी नदी की शिलाओं से अवतार लेंगे रामलला!

जनादेश एक्सप्रेस/नई दिल्ली: भारत और नेपाल दोनों एक दूसरे से कई मायनों में समानता रखते हैं। नेपाल के साथ भारत सामाजिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंध सदियों से साझा करता आ रहा है। नेपाल के साथ भारत का रिश्ता रोटी और बेटी का है। भले ही कुछ वर्षों से नेपाल चीन के प्रभाव में आ गया। जिसकी वजह से इन दोनों देशों के बीच दूरियां बढ़ गई, लेकिन एक बार पुनः 6 करोड़ साल पुराने शालिग्राम से दोनों देश नज़दीक आने को आतुर दिख रहे हैं। यह तथ्य ऐतिहासिक है कि अयोध्या के मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का विवाह जनकपुर की राजकुमारी सीता से हुआ था। हालाँकि, पिछले दो दशकों में भारत-नेपाल संबंधों में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। साम्राज्यवादी और विस्तारवादी नीति चीन की सदैव से रही है और इस नीति के वशीभूत होकर चीन ने भारत के पड़ोसी देशों को अपने प्रभाव में लेने का हर संभव प्रयास किया है। यही वजह है कि आर्थिक, सैन्य और राजनीतिक सहायता के बहाने वह भारत-नेपाल संबंधों में दरार पैदा करना चाहता है। पिछले साल नेपाल में हुए संसदीय चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलने के कारण वहां गठबंधन सरकार बनी थी, जिसे परोक्ष रूप से चीन से प्रभावित करने की कोशिश की गई।

चीन की मंशा स्पष्ट है और वह चाहता है कि भारत के पड़ोसी देशों पर उसका कब्ज़ा हो जाए। ताकि वह भारत पर एक मनोवैज्ञानिक बढ़त बना सके, लेकिन अब ड्रैगन अपने इस मंसूबे में कामयाब होता नहीं दिख रहा क्योंकि भारत भी विगत नौ वर्षो में काफी मजबूती के साथ वैश्विक फ़लक पर निखरकर सामने आया है। आज भारत की नीति बिल्कुल स्पष्ट है। पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारा देश आजकल विजन और विजयश्री की पताका बुलंद कर रहा है। हमारे सियासतदां पड़ोसी मुल्कों से बेहतर समन्वय बनाकर तो आगे बढ़ ही रहे, साथ में वैश्विक स्तर के संपन्न राष्ट्रों को भी साध रहें हैं। भारत अब गुट-निरपेक्ष नहीं, बल्कि मल्टीअलाइनमेंट की नीति पर आगे बढ़ रहा है। भारत की विदेश नीति आज लचीलेपन और दूरदर्शिता से परिपूर्ण है। ऐसे में नेपाल का भारत के करीब आना सुखद है। भारत और नेपाल, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से काफी समानता रखते हैं और अतीत में नेपाल एक हिंदू राष्ट्र के रूप में भारत के बहुत करीब रहा है। भारत के बिहार प्रांत का मिथिलांचल क्षेत्र और इसकी संस्कृति नेपाल तक फैली हुई है। नेपाली के अलावा, मैथिली को नेपाल में दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में भी स्वीकार किया जाता है।

आज से नहीं बल्कि आदिकाल से भारत और नेपाल दोनों एक-दूसरे के पूरक की स्थिति में रहें हैं। गोरखा रेजीमेंट को आखिर कौन भूल सकता है? जिसमें अधिकतर नेपाली युवा शामिल होते हैं। चीन जैसे देश और कुछ नफ़रत पसंद लोग भले ही भारत और नेपाल के सम्बन्धों में खलल डालने की कोशिश वर्षों से करते आ रहें हो, लेकिन ये दोनों देश इस तरह से आपस में जुड़े हुए हैं कि कोई भी ताकत इन्हें अलग नहीं कर सकती है। यही वाकया अब एक बार फिर देखने को मिल रहा है। भगवान श्रीराम का मंदिर अयोध्या में बन रहा है और जश्न नेपाल में भी देखने को मिल रहा है। यह दो देशों की संस्कृति के अंगीकृत हो जाने का जश्न है। दो देशों के एकसार हो जाने का जश्न है। जश्न है भगवान श्रीराम के अद्भुत लोक के निर्माण का। उस रामराज के वापस आने का। जिसमें लोक मंगल की कामना ही सर्वोपरि होती है। राम-जानकी जीवन ही कल्याणकारी राज्य की अवधारणा की मिसाल पेश करता है और इन्हीं का जीवन एकबार पुनः दो पड़ोसी देशों को करीब से जोड़ने का काम कर रहा है।

श्री राम और सीता दोनों देशों की साझी सामूहिक विरासत और आस्था के प्रमुख बिंदु हैं। अयोध्या से जनकपुर तीर्थ की परिक्रमा भारत-नेपाल संबंधों से ही संभव है। वर्तमान में जब अयोध्या में भव्य श्री राम मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है, तब नेपाल के साधु-महात्मा और आम लोग इसमें निरंतर अपना योगदान दे रहे हैं। अयोध्या और नेपाल के बीच एक बार फिर त्रेतायुग के संबंध ताजा हो रहें हैं। अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर में रामलला की मूर्ति के लिए नेपाल से करोड़ों वर्ष पुरानी शालिग्राम शिलाएं लाई गई है। ये शिला नेपाल की गंडकी नदी से निकली गई है। हिन्दू आस्था के आदर्श पुरूष भगवान राम की मूर्ति निर्माण के लिए माँ जानकी के मायके से पत्थर लाने के पीछे ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताएं है। कहते हैं कि जिस काली गण्डकी नदी के किनारे से यह पत्थर लिए गए है। वह नेपाल की पवित्र नदी है जो दामोदर कुण्ड से निकल कर भारत में गंगा नदी में मिलती है। इस नदी किनारे शालिग्राम के पत्थर पाए जाते हैं, जो करोड़ों वर्ष पुराने है। इन पत्थरों को भगवान विष्णु का रूप शालीग्राम मानकर पूजे जाने की परम्परा है। इस देवशिला का अपना अलग महत्व है।

नेपाल के पूर्व उप प्रधानमंत्री के मुताबिक वो पहले जनकपुर से जुड़ी श्रीराम की विरासत के अनुरूप रामलला के लिए धनुष भेंट करना चाहते थे। किंतु राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के साथ दो वर्ष तक चले संवाद के बाद यह तय हुआ कि नेपाल की गंडकी नदी से रामलला की मूर्ति के लिए पवित्र शिला अर्पित की जाएगी। ऐसे में श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट के लोगों ने भी शिला समर्पित करने के लिए नेपाल सरकार और वहां के लोगों का आभार व्यक्त किया है और आशा कि जा सकती है कि यह शिला न केवल भारत-नेपाल संबंधों को मजबूत करेगी बल्कि दोनों देशों के विश्वास, सद्भाव, एकता और आपसी निर्भरता को भी सदा-सदा के लिए प्रगाढ़ता प्रदान करेगी।