ब्यूरो यूपी जनादेश एक्सप्रेस —
इलाहाबाद का नाम प्रयागराज के बाद फैजाबाद का नाम अयाेेध्या किए जाने को लेकर बहस छिड़ी हुई है। सरकार इसे जनभावनाओं का सम्मान बता रही है तो विपक्ष हिन्दुत्व एजेंडा लागू करने की कोशिश। नामों को लेकर ऐसी सियासत नई नहीं है। गोरखपुर का ही नाम पिछले 2600 साल में आठ बार बदला गया।
दुनिया को योग से परिचित कराने वाले गुरु गोरक्षनाथ के नाम पर गोरखपुर का मौजूदा नाम 217 साल पुराना है। इसके पहले नौवीं शताब्दी में भी इसे गुरु गोरक्षनाथ के नाम पर ‘गोरक्षपुर’ के नाम से जाना जाता था। बाद की सदियों में शासकों की हुकूमत के साथ इस क्षेत्र का नाम भी बार-बार नाम बदलता रहा। कभी सूब-ए-सर्किया के नाम से जाना गया, कभी अख्तनगर, कभी गोरखपुर सरकार तो कभी मोअज्जमाबाद के नाम से। अंतत: अंग्रेजों ने 1801 में इसका नाम ‘गोरखपुर’ कर दिया जो नौवीं शताब्दी के ‘गोरक्षपुर’ और गुरु गोरक्षनाथ पर आधारित है।
‘शहरनामा’ में ‘सूब ए सर्किया’ का जिक्र
पिछले साल आई साहित्यकार डा.वेदप्रकाश पांडेय द्वारा सम्पादित किताब ‘शहरनामा’ के अनुसार मुगलकाल में जब जौनपुर में सर्की शासक हुए तो इसका नाम बदलकर सूब-ए-सर्किया कर दिया गया। एक समय में इसका नाम अख्तरनगर भी था। फिर वह दौर आया जब इसे गोरखपुर सरकार कहा गया।
औरंगजेब के बेटे के नाम पर हुआ मोअज्जमाबाद
औरंगजेब के शासन (1658-1707) के दौरान इसका नाम मोअज्जमाबाद पड़ा। औरंगजेब का बेटा मुअज्जम यहां शिकार के लिए आया था। वह कुछ वक्त तक यहां ठहरा। उसी के नाम पर शहर का नाम मोअज्जमाबाद कर दिया गया।1801 में अंग्रेजों ने एक बार फिर गुरु गोरक्षनाथ के नाम पर शहर का नाम बदलकर गोरखपुर कर दिया। तबसे आज तक इसका नाम यही है।’
बुद्ध से पहले रामग्राम, मौर्यकाल में पिप्पलीवन
गोरखपुर विवि के प्राचीन इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.राजवंत राव के अनुसार जहां रामगढ़झील है वहां 2600 साल पहले रामग्राम हुआ करता था। यह कोलियों की राजधानी थी। भौगोलिक आपदा के चलते रामग्राम धंसकर झील में बदल गया।
चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में इस क्षेत्र को पिप्पलिवन के नाम से भी जाना गया। गुरु गोरक्षनाथ के बढ़ते प्रभाव के चलते नौवीं शताब्दी में इसका नाम गोरक्षपुर हुआ।
कब रहा कौन सा नाम-
रामग्राम, छठवीं शताबदी ईसा पूर्व
पिप्पलीवन-तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व
गोरक्षपुर-नौवीं शताब्दी
सूब-ए-सर्किया-13 वीं, 14 वीं शताब्दी
अख्तरनगर-14 वीं शताब्दी के बाद किसी कालखंड में
गोरखपुर सरकार-17 वीं शताब्दी से पूर्व किसी कालखंड में
मोअज्जमाबाद-17 वीं शताब्दी
गोरखपुर-1801 से अब तक
क्या कहते हैं इतिहासकार
गोरखपुर का मौजूदा नाम सर्वाधिक लोकप्रिय रहा। इसके पहले हुए ज्यादातर परिवर्तनों को लोकस्वीकृति नहीं मिल सकी।
प्रो.राजवंत राव, पूर्व विभागाध्यक्ष, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विवि
इतिहास में शासकों ने बार-बार दूसरे नाम थोपने की कोशिश की लेकिन लोकजीवन में गुरु गोरक्षनाथ की अपार आस्था ने ऐसा होने नहीं दिया।
डा.प्रदीप राव, नाथ पंथ के जानकार
इलाहाबाद ही नहीं देश के कई शहरों, जगहों, सड़कों और प्रतिष्ठानों के नामों से देश की जनता आज भी जुड़ाव महसूस नहीं करती क्योंकि ये सहज और स्वावभाविक नहीं बल्कि ताकत के बल पर किसी कालखंड में थोपे गए थे।
प्रो.हिमांशु चतुर्वेदी, पूर्व अध्यक्ष, इतिहास विभाग, गोरखपुर विवि
योगी तो पहले से रहे हैं ‘नेमचेंजर’
जगहों के नाम बदलने का सीएम योगी आदित्यनाथ का अभियान पुराना है। सांसद रहते उन्होंने गोरखपुर के कई मोहल्लों का नाम बदलवाने का अभियान चलाया। इसी के तहत अलीनगर को आर्यनगर, उर्दू बाजार को हिन्दी बाजार, हुमायूंपुर को हनुमानपुर कहा जाने लगा।