शिक्षा विभाग की माया , अब तक समझ न आया
* क्या कार्य करने के बाद वेेेतन भुगतान करेगी सरकार ।
* विभाग नेे ही पूर्व में दिया था आदेश कि कााम करने वालों का वेेेतन समय से दिया जाएगा ।
गत 3 माह से शिक्षा विभाग में उथल-पुथल मचा हुआ है जनप्रतिनिधियों के द्वारा तरह-तरह के आरोप प्रत्यारोप लगाए जा गए ।बड़ी ही अजीबो गरीब रहस्य से पर्दा उठते नजर आ रहे थे , नियोजित शिक्षकों में निराशा व्याप्त है, क्योंकि उनके नियोजन पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है । शिक्षा विभाग पहले से ही अपने कार्यक्रमों को लेकर चर्चा का पर्याय बना रहा , वर्तमान में जांच कमेटियों को लेकर और भी चर्चाओं का बाजार गर्म है । कुछ आरोप-प्रत्यारोप तो इस प्रकार लग रहे हैं ,जिनका कोई आधार ही नहीं है । कईयों ने तो माननीय न्यायालय के आदेश पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया जो सोचने और समझने की विषय वस्तु है । आइए बताते हैं शिक्षा विभाग के कुछ ऐसे चकित कर देने वाले कारनामे जो शायद ना कभी आपने सुना होगा और ना ही कभी आपने देखा होगा ।
क्या है प्राधिकार —
अपीलीय प्राधिकार एक संवैधानिक संस्थान है , न ही कोई एनजीओ द्वारा गठित संस्थान है ,कि जिस पर जब चाहे कोई भी व्यक्ति प्रश्न चिन्ह खड़ा कर सकें । ज्ञात हो कि प्राधिकार जिसका संचालन माननीय न्यायाधीश के द्वारा होता है, परंतु तथाकथित लोगो व दलालों के द्वारा अपीलीय प्राधिकार को बच्चों का झुनझुना बना दिया गया है । पढ़े लिखे समझदार लोग भी एक संवैधानिक संस्थान पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देते हैं ,इतना ही नहीं जिले के वरीय पदाधिकारियों को भी समझ नहीं कि न्यायालय ही सर्वोपरि है ,जैसा कि हमारे देश का संविधान कहता है । प्रधिकार के अनियमितताओं के लिए या उसके विरुद्ध किसी जांच प्रक्रिया के लिए राज्य अपीलीय प्राधिकार बना हुआ है जिसमें अपील की जा सकती है । और प्रधिकार द्वारा की गई कमियों का निष्पादन करवाया जा सकता है ,लेकिन यहां तो प्राधिकार को एक हवा बना दिया गया है ,जैसे ऐसा प्रतीत होता है ,कि अपीलीय प्राधिकार एक एनजीओ द्वारा संचालित संस्थान है । जिस पर जब जिस को मनाया आरोप-प्रत्यारोप लगा दिया ऐसे आरोप प्रत्यारोप ऐसे संवैधानिक संस्थानों पर टीका टिप्पणी भविष्य के लिए सही नहीं है ।भविष्य में इसके बत्तर परिणाम मिल सकते हैं , कोई भी व्यक्ति किसी भी संवैधानिक संस्थान पर बिना किसी जांच पड़ताल के कभी भी प्रश्न चिन्ह खड़ा कर सकता है ।
प्राधिकार के चयनित शिक्षकों के वेतन भुगतान से संबंधित कुछ तथ्य —
नियोजित शिक्षकों के वेतन भुगतान तमाम आरोप प्रत्यारोप लगा दिए गए नियोजित शिक्षकों को गलत ठहरा दिया गया । प्राधिकार पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया गया इन सभी सवालों के जवाब में प्रधान सचिव शिक्षा विभाग बिहार सरकार पटना , राज्य मानवाधिकार अधिकार आयोग , अल्पसंख्यक आयोग, माननीय उच्च न्यायालय क्या आदेश होता है । कार्य कर रहे शिक्षकों का भुगतान किसी भी स्थिति में अवरुद्ध नहीं करना है माननीय प्रधान सचिव महोदय के एक पत्र के पत्रांक संख्या 624 दिनांक 27.08.2012 में कहा कि प्राधिकार के आदेश की समीक्षा न निदेशालय स्तर पर की जा सकती है, और ना ही विभाग के स्तर पर । जब इस प्रकार का आदेश प्रधान सचिव के द्वारा निकाला जा सकता है ,तो फिर किसी भी तथाकथित व्यक्ति के द्वारा प्राधिकार पर प्रश्न चिन्ह कैसे खड़ा किया जा सकता है । एक तरफ जहां शासन के अधिकृत लोग यह पत्र निकालते हैं ,कि इसकी समीक्षा विभाग स्तर पर नहीं की जा सकती फिर जिले में इसकी समीक्षा पर चर्चा कैसे संभव है ? कैसे किसी तथाकथित व्यक्ति के द्वारा यह आरोप लगाया जाता है की नियोजन ही गलत है ? राज्य अपीलीय प्राधिकार से या माननीय उच्च न्यायालय से बिना किसी दिशानिर्देश के संवैधानिक संस्थान के ऊपर टिका टिप्पणी शुरू कर दी जाती है, जो अशोभनीय है । टीचरों का वेतन भुगतान विभाग से जारी पत्र में कहां गया कार्य कर रहे शिक्षकों का वेतन भुगतान की स्थिति में करना है कार्य दौरान वेतन ना देना न्यायसंगत नहीं है ।कार्य कर रहे सभी शिक्षकों का भुगतान होना चाहिए जो न्यायसंगत है ।
बिहार का पहला ऐसा जिला जहां कोई भी पूर्ण रूप से प्रधानाध्यापक नहीं —
बिहार में सीवान ऐसा पहला जिला है जहां कोई भी पूर्ण रूप से प्रधानाध्यापक नहीं है । इसका महत्व कहीं कारण है किस जिले में शिक्षक पदोन्नति नहीं की गई जिससे कोई भी स्वतंत्र रूप से प्रधानाध्यापक विद्यालय को नहीं मिल सका जिसके कारण विद्यालय संचालन के सभी कार्यों में बाधा उत्पन्न होती है ,आखिर वह कौन सा कारण है ? जिसकी वजह से आज तक शिक्षक पदोन्नति नहीं की गई थी । जब कभी भी किसी ने शिक्षक पदोन्नति मामले पर कार्य करना शुरू किया तो कहीं ना कहीं से उसे कुछ तथाकथित लोगों के द्वारा रोकने का प्रयास किया गया, और वह अपने प्रयास निरंतर सफल होते रहे । शिक्षक पदोन्नति मामला अधर में लटक गया, जिले में कुछ ऐसे भी मामला देखने को मिले हैं ,जिसमें पदाधिकारियों की मिलीभगत से जूनियर अध्यापक को सीनियरिटी देते हुए प्रधानाध्यापक बना दिया गया । वहीं दूसरी तरफ सीनियर व अध्यापकों को दरकिनार कर उसकी काबिलियत पर प्रश्नचिन्ह लगा कर ओछी हरकत का प्रमाण दिया गया। शिक्षा विभाग के नियमतः जांच हो जाए तो कई ऐसे चेहरे पर नकाब होंगे , जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है , हो सकता है उनके बेनकाब होने से बिहार शिक्षा व्यवस्था पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ जाए ,या फिर उसे जांच को वही स्थगित कर ठंडे बस्ते में डाल दिया जाए , जिससे कि उन प्रभावशाली व्यक्तियों और उनसे संबंधित सरकार के नुमाइंदे का नाम जनता के बीच ना सके । किसी भी व्यवस्था को सरकार के अधीन ही चलना है ,और इन प्रक्रियाओं के बीच कहीं ना कहीं सरकार की वह कड़ियां मौजूद है ,जिन्हें कभी शायद ही उजागर किया जा सकता है, जो एक रहस्य है ,और रहस्य बनकर ही रह जाएगा । वर्तमान की कार्यप्रणाली से यही प्रतीत होता है कि इस रहस्य से कभी भी पर्दा नहीं उठ सकता है ।
क्या कहते है वरीय पदाधिकारी —
इस सम्बंध में जनादेश टीम ने निदेशक शिक्षा प्रसासन की राय जाननी चाहिए तो उन्होंने बताया कि माननीय न्यायालय और प्रधान सचिव के आदेश का पालन होगा और कार्य करने वालो के वेतन का भुगतान किया जाएगा इसके लिए सभी जिलों को पत्र निर्गत किया गया है।