लाइलाज हो रही है- अमर्यादित भाषा की राजनीति.

अभय कुमार —-

राजनीति में भाषा की मर्यादा बेमतलब होती जा रही है और नेताओं के अमर्यादित बिगड़े बोल बढ़ते ही जा रहे हैं. कोई भी सियासी दल इसे सख्ती से रोकने की कोशिश करता दिखाई नहीं दे रहा है. यदि कोई नेता एकदम अमर्यादित बयान देता है और पार्टी परेशानी में आ जाती है, तो दिखावे के लिए उस नेता को पार्टी बाहर का रास्ता तो दिखा देती है, लेकिन उसे अप्रत्यक्ष लाभ तो देती ही है, कुछ समय बाद उसकी पार्टी में वापसी भी हो जाती है.
यूपी में भाजपा की विधायक साधना सिंह ने एक सभा में विवादित बयान देते हुए कहा था कि- हमको पूर्व मुख्यमंत्री न तो महिला लगती हैं और न ही पुरुष, इनको अपना सम्मान ही समझ में नहीं आता?
वे इतना कह कर ही नहीं रूकी, उन्होंने और भी अमर्यादित टिप्पणियां की जिन्हें प्रकाशित करना संभव नहीं है.
हालांकि, बयान पर विवाद होने के बाद उन्होंने एक बयान जारी कर माफी मांग ली है, लेकिन क्या यह पर्याप्त है?
यह पहली बार नहीं है कि किसी नेता ने मायावती को लेकर इस तरह के आपत्तिजनक बयान दिए हैं. इससे पहले 2016 में यूपी में बीजेपी के तत्कालीन उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने भी मायावती पर बेहद आपत्तिजनक बयान दिया था, जिस पर हुए विवाद के बाद भाजपा ने उन्हें निलंबित कर दिया था, लेकिन इस वक्त यूपी की सरकार में दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह मंत्री हैं और दयाशंकर सिंह की भी पार्टी में वापसी हो चुकी है.
गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 के दौरान कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने भी अमर्यादित बयान दिया था, जिसका नतीजा यह रहा कि गुजरात में कांग्रेस के हाथ से जीत फिसल गई?
खबर है कि अपने माफीनामे में साधना सिंह ने लिखा है कि- मेरी मंशा सिर्फ यही थी कि विगत 2 जून 1995 को गेस्ट हाऊस कांड में भाजपा ने जब मायावतीजी की मदद की थी, उसे सिर्फ याद दिलाना था न कि उनका अपमान करना था. यदि मेरे शब्दों से किसी को कष्ट हुआ है तो मैं खेद प्रकट करती हूं.
हालांकि, राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी साधना सिंह के बयान का स्वतः संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी किया है, तो साधना सिंह के बयान की निंदा करते हुए बसपा प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया का कहना था कि- ये बयान सामंती और मनुवादी सोच का प्रतीक है और दर्शाता है कि भाजपा यूपी में हुए महागठबंधन से किस हद तक डरी हुई है. बसपा पार्टी इस मामले में विधायक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर रही है.
ऐसे अमर्यादित बयानों पर अक्सर पार्टी का प्रत्यक्ष रूख बयान को अस्वीकार करना और व्यक्तिगत राय करार देना होता है, लेकिन विरोधियों के ऐसे ही बयानों के उदाहरण देकर अप्रत्यक्ष रूप से इनका समर्थन करना होता है.