जनादेश/जलालपुर
पूर्वी गीत के जनक आज भोजपुरिया स्तंभ पंडित महेंद्र मिसिर के पुण्यतिथि पर जलालपुर चौक में सभा का आयोजन किया गया ।’हंसी- हंसी पनवां खियवले गोपीचनवा पिरितिया लगा कि भेजवले जेलखनवा सरीखे कालजयी गीतों के रचनाकार, भोजपुरी पूर्वी धुन के जनक, कवि व स्वतंत्रता सेनानी पंडित महेंद्र मिश्र के लोकप्रिय व कालजयी गीतों के जनक के 72 वी पुण्यतिथि समारोह पूर्वक जलालपुर में मनाया गया। राजद के भावी प्रत्याशी महाराजगंज के रणधीर कुमार सिंह ने माल्यार्पण कर पुण्यतिथि के अवसर पर सभा को संबोधित करते हुए कहा कि
सरकार ने इनकी जयंती को सरकारी कलेंडर में शामिल तो कर लिया पर इनके नाम पर कुछ भी नहीं हो पाया और तो और इन्हें अब तक स्वतन्त्रता सेनानी तक का सम्मान नहीं मिल सका जो काफी दुखद है।उन्होंने कहा
आगुलि में डसले बिया नागिनिया रे, हाय ननदी सैंया के जागा द.। सासु मोरा मारे रामा बास के छेवकिया की ननदिया मोरा रे सुसुकत पनिया के जाय.जैसे कई लोक प्रिय धुन जब सुनाई पड़ती हैं तो बरबस ही इन गीतों के रचियता पंडित महेंद्र मिश्रा की याद हर भोजपुरी भाषा भाषी के लोगों को आ ही जाती है।
महेंद्र मिश्र ने गुलामी की दास्तां की बेड़ियां तोड़ने के लिए अपने गाना के माध्यम से समाज को जागृत करने के लिए बढ़ चढ़के हिस्सा लिया था। अंग्रेजी के प्रति बिगुल फूंकने वालों में से महेंद्र मिसिर का नाम एक है लेकिन सरकार के तुच्छ मानसिकता और राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते महेंद्र मिसिर इतिहास के पन्नों में सिमट के रह गए। देश को आजाद कराने वाले जैसे अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को सरकार के द्वारा प्रश्रय दिया जाता है ठीक उसके उल्टे महेंद्र मिश्र को सरकार के द्वारा भुला दिया जाता है।
महेंद्र मिसिर द्वारा रचित पूर्वी गीत आज भी भोजपुरी समाज के लिए धरोहर है समाज के पहरुआ के रूप में समय-समय पर अपने गीतों के माध्यम से जागृत करना अध्यात्मिक और संस्कृतिक बोध कराना महेंद्र मिश्र के विलक्षण प्रतिभा और विद्वता के प्रतीक रहा है लेकिन सरकार द्वारा किन्ही कारणों से उन्हें उनके किए गए कार्यों के अनुसार सम्मान ना देना अति चिंतनीय और दुर्भाग्य पूर्ण बात है।
इस अवसर पर कन्हैया सिंह, तूफानी, महेंद्र मिश्र के पौत्र रामनाथ मिसिर एवं केशव सिंह मुखिया देवेंद्र सिंह ,मुकेश सिंह
रामबाबू सिंह कुणाल सिंह समेत सैकड़ो लोग उपस्थित थे ।