प्रादेशिक सरकारों को मुद्दो की मझधार में छोड़, 2019 के लिए सुधार अभियान में जुटी मोदी टीम?

अभय कुमार —

इनदिनों. इस वक्त पांच राज्यों के लिए जो प्रादेशिक चुनाव हो रहे हैं, उनमें से तीन राज्यों- एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव कांग्रेस और भाजपा, दोनों के लिए खास हैं, क्योंकि इनके नतीजों की सियासी छाया 2019 के आम चुनावों को प्रभावित करेगी.

जहां सभी दल प्रादेशिक चुनावों में जुटे रहे हैं वहीं, पीएम मोदी टीम उन जनहित के केन्द्रीय मुद्दों को सुधारने में लग गई है जिनके कारण 2013 विस चुनाव में एकतरफा जीत हांसिल करने वाली भाजपा, विस चुनाव में संघर्ष की स्थिति में आ गई है.

गैस-पेट्रोल-डीजल के दाम, आर्थिक आधार पर आरक्षण, एससी-एसटी एक्ट में संशोधन, एटीएम-बैंकों से जुड़ी समस्याएं, किसानों की समस्याएं, बेरोजगारी, जीएटी आदि केन्द्र सरकार से जुड़े जनहित के ऐसे मुद्दें हैं जिनके कारण विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, भाजपा की प्रादेशिक सरकारों को तगड़ी चुनौती देने की स्थिति में आ गई है. अब इन मुद्दों के असर से पीएम मोदी सरकार को बचाने के लिए, सुधार अभियान शुरू हो गया है.

हालांकि, इन केन्द्रीय मुद्दों के कारण प्रादेशिक सरकारों को बड़ा नुकसान होने की आशंका व्यक्त की जा रही है. यदि इन तीन प्रमुख राज्यों में भाजपा हारती है तो वह प्रादेशिक सरकारों के कामकाज के कारण नहीं, केन्द्र सरकार के निर्णयों के कारण हारेगी, क्योंकि पीएम मोदी सरकार के विभिन्न निर्णयों के कारण भाजपा के वोट बैंक- सामान्य वर्ग और शहरी मतदाताओं में भारी नाराजगी है.

गैस के दाम के कारण तो प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना ही नाकामयाबी के किनारे पर खड़ी है, क्योंकि पहली बार भले ही मुफ्त में गैस सिलेंडर मिल गया हो, किन्तु करीब एक हजार रुपए दे कर हर बार गैस सिलेंडर भरवाना आसान नहीं है. हालांकि, सब्सिडी का पैसा फिर से व्यक्ति के बैंक खाते में आ जाता है, परन्तु गैस सिलेंडर लेते वक्त इतनी बड़ी राशि देना अखरता है. अब इस व्यवस्था को बदलने के रास्ते निकाले जा रहे हैं ताकि सब्सिडी के बैंक चक्र से उपभोक्ताओं को मुक्ति मिले और गैस सिलेंडर के लिए बड़ी राशि नहीं देनी पड़े.

इसी तरह पेट्रोल-डीजल के रेट के कारण भी सामान्य वर्ग और शहरी मतदाता बेहद परेशान है, क्योंकि यह जेब पर तो भारी है ही, इसके कई प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रभाव और भी हैं. धीरे-धीरे इनके दाम भी कम किए जाने के रास्ते तलाशे जा रहे हैं.

बैंको के नए-नए नियम और एटीएम की बढ़ती अव्यवस्थाओं के कारण आमआदमी परेशान है. इन एटीएम पर क्षमता से अधिक दबाव है, लिहाजा खबरों की माने तो कुछ माह में ही बहुत सारे एटीएम काम करना बंद कर देंगे. एक बड़ी समस्या यह भी है कि एटीएम में पांच सौ रुपए से कम रुपए नहीं मिल रहे हैं जिसके कारण गरीब उपभोक्ताओं को बहुत परेशानी हो रही है. इस दिशा में भी गंभीरता से सोचा जा रहा है.

सामान्य वर्ग और शहरी मतदाताओं की नाराजगी दूर करने के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए भी माहौल तैयार किया जा रहा है.

यह विचार उभर कर आ रहा है कि जनता जो महसूस करती है उसको तर्कों और भावनात्मक आधार पर नहीं बदला जा सकता है, हालत यह है कि इन मुद्दों पर भाजपा समर्थक अपने घर-परिवार वालों को ही नहीं समझा पा रहे हैं. जनता देशहित से जुड़े मुद्दों से तो सहमत है, लेकिन जनहित से जुड़े मुद्दों की उपेक्षा भाजपा को भारी पड़ रही है. इसके कारण इमोशनल इंपेक्ट भी कमजोर पड़ता जा रहा है.

राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर भी अब जनता भाजपा पर भरोसा नहीं कर पा रही है. आमजन को समझ नहीं आ रहा है कि जिस भाजपा ने सारे कानून-कायदे तोड़ कर राम मंदिर आंदोलन चलाया था, वही भाजपा अब मंदिर निर्माण में देरी के लिए काननू की आड़ क्यों ले रही है? क्यों संसद में निर्णय ले कर राम मंदिर बना रही है? राम मंदिर समर्थक इसलिए भी बेचैन हैं कि उन्हें लगता है कि इस वक्त जो सियासी हालात हैं उनके मद्देनजर भविष्य में न तो भाजपा केन्द्र में और न ही उत्तर प्रदेश में इतने बहुमत के साथ वापस आएगी, इसलिए यदि इस वक्त भाजपा ने सही निर्णय नहीं लिया तो मंदिर निर्माण का कार्य बहुत आगे चला जाएगा.

सियासी सारांश यही है कि देर से ही सही, जनहित के मुद्दों को लेकर पीएम मोदी सरकार के गलत निर्णयों का असर नजर आने लगा है. इसलिए प्रादेशिक सरकारों को मुद्दो की मझधार में छोड़, 2019 के लिए सुधार अभियान में पीएम मोदी टीम जुट गई है? इनमें सुधार होता है तो केन्द्र सरकार को जरूर थोड़ा-बहुत फायदा होगा, लेकिन प्रादेशिक सरकारों का तो जो नुकसान होना था, हो चुका?

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