पुष्कर नेगी ब्यूरो जनादेश एक्सप्रेस एमपी —
मुद्दा. कुछ दिनों पहले ही केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने परिवारवाद-वंशवाद की आड़ में गैरभाजपाइयों पर निशाना साधते हुए कहा था कि- पहले प्रधानमंत्री के पेट से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के पेट से मुख्यमंत्री पैदा हुए, लेकिन हमें इसे बदलना होगा. यह लोकतंत्र के अस्तित्व में न होने के बराबर ही है?
प्रेस रिपोर्ट्स के अनुसार केंद्रीय मंत्री का कहना था कि- हम गरीब आबादी वाले एक समृद्ध राष्ट्र हैं. जिन्होंने शासन किया, उन्होंने अपने परिवारों को फायदा पहुंचाया. एमएलए के पेट से एमएलए पैदा हुए और एमपी के पेट से एमपी पैदा हुए, लेकिन हमें इसे बदलना होगा!
बहरहाल, वंशवाद तो नहीं बदला, अलबत्ता नीति जरूर बदल गई, नतीजा? परिवारवाद के सामने सिद्धान्त ढेर हो गए?
वंशवाद के चलते ही कर्नाटक उपचुनाव में पांच में से एक सीट भाजपा बचा पाई थी तो एमपी में भी परिवारवाद को हरी झंडी दिखा दी गई.
अभी राजस्थान में भाजपा की पहली सूची आई तो इसमें भी परिवारवाद का असर नजर आया
प्रतापगढ से मंत्री नन्दलाल मीणा के बेटे हेमन्त मीणा, पिलानी से विधायक सुन्दरलाल की जगह उनके बेटे कैलाश मेघवाल, कोलायत सीट से देवीसिंह भाटी की पुत्रवधु पूनम कंवर, किशनगढ़ से विधायक भागीरथ चैधरी की जगह उनके बेटे विकास चैधरी, बामनवास से कुंजीलाल की जगह उनके बेटे राजेन्द्र मीणा, नसीराबाद सीट से दिवंगत सांवरलाल जाट के पुत्र रामस्वरूप लाम्बा, डीग-कुम्हेर सीट से दिवंगत डॉ. दिगम्बर सिंह के बेटे डॉ. शैलेष सिंह आदि को भाजपा से टिकट दिया गया है.
दरअसल, चुनाव में हार के डर से भाजपा ने वंशवाद के विरोध को ठंडे बस्ते में डाल दिया है! देखना दिलचस्प होगा कि- क्या परिवारवाद के सहारे प्रादेशिक सत्ता तक पहुंच पाएगी भाजपा?