राजीव रंजन तिवारी
कटेया(गोपालगंज):- पहलवानी कईला से कसल देहि, चमकत लिलार, देहि पे सिलिक के मह्ंगा कुरता आ धोती, गरदन मे चमचमात सोना के सिकरी आ मुह मे पान के गिलौरी, कुछ अईसन रहे भोजपुरी के मशहुर आ पुरबी के बेताज बादशाह महेन्दर मिसिर के व्यक्तित्व। जिनकर नाव गांव शोहरत खाली भारते मे ना बलुक फिजी, मारिसस, सुरीनाम, नीदरलैंड, त्रिनिदाद , ब्रिटिस गुआना, नेपाल आदि देसन मे फईलल रहे। जिनके लोक नाटककार भोजपुरी के सेक्सपियर भिखारी ठाकुर आपन गुरु मानत रहले आ हर महीना गीत संगीत के बारीकी पे सीखे के गरज से कुछ बतकही करे के गरज से मिसिर जी के गांवे जात रहनी।
ईनकर पुण्य तिथि के अवसर पर लोक अस्मिता कटेया के तत्वाधान में एगो सभा के आयोजन सवेरा फाउन्डेशन के प्रांगण मे क के आज उन कर पुण्य तिथि मनावल गईल। एह सभा के संबोधित करत लोक अस्मिता के सजग प्रहरी अमित परिजात उनका व्यक्तित्व पर प्रकाश डालत कहले छपरा जिला के मिसिरवलिया गांव मे 16 मार्च 1886 के महेन्दर मिसिर के जनम भईल रहे, माई के नाव गायत्री देवी आ बाबुजी के नाव शिवशंकर मिसिर रहल । बचपने महेन्दर मिसिर जी के मन पहलवानी, कीर्तन गाना बजाना गीत गवनई मे लागे । गांव मे संस्कृत के पंडित नन्दु मिसिर जी जब अभिज्ञान शांकुतलम पढावस त महेन्दर मिसिर जी बडा चाव से एक एक बात पे धेयान देसु आ आगे चलि के अभिज्ञान शाकुंतलम के असर महेन्दर मिसिर जी के गीतन पे पडल ।
महेन्दर मिसिर जी के बिआह रुपरेखा देवी से भईल रहे जिनका से हिकायत मिसिर के नाव से एगो लईका भी भईल, बाकी घर गृहस्थी मे मन ना लागला के कारन महेन्दर मिसिर जी हर तरह से गीत संगीत कीर्तन गवनी मे जुटि गईनी ।
बंगाल मे शुरु भईल सन्यासी आन्दोलन से जुडला के बाद महेन्दर मिसिर जी अंग्रेजन के खिलाफ बरिआर मोर्चा खोल देहनी आ ओहि घरी उँहा के पहिचान एगो पईसा वाला बंगाली से भईल जे इँहा के आवाज आ गीत संगीत से एतना ना खुश रहे की लन्दन जाये घरी उ आपन नोट छापे वाली मशीन इँहा के जिम्मे लगा के चली गईल । अंग्रेजी सरकार के आर्थि बेवस्था के तहस नहस आ हिलावे डोलावे खातिर महेन्दर मिसिर जी जाली नोट छापे लगनी जवना से अंग्रेज सरकार एकदम से पगला गईल बउखला गईल आ फेरु अपना आदमी लोगन के जासुसी खातिर लगा देहलस । सी आई डी जटाधारी प्रसाद आ सुरेन्द्र लाल घोष के अगुवाई मे चुप्पे चोरी खोजाहट होखे लागल । सुरेन्द्र लाल घोष गोपीचन बनी के तीन साल ले मिसिर जी के नोकर बनी के रहलन आ एकदम खास बनी के मय जानकारी जुटा लेहलन । फेरु का, 16 अपरैल 1924 के राति खा अंग्रेज सिपाही गोपीचन के इशारा पे महेन्दर मिसिर जी के घर पे छापा डललन सन आ नोट बनावे के मशीन के संगे संगे नोट के बंडल , महेन्दर मिसिर आ उनुका चारो भाई के पकड लेहलन सन । पटना उच्चन्यालय मे तीन महिना ले सुनवाई भईल जवन मे मिसिर जी के ओर से वकील रहलन विप्लवी हेमचन्द्र मिसिर आ मशहुर स्वतंत्रता सेनानी चितरंजन दास ! बाकी अंत मे 10 साल के सजा महेन्दर मिसिर के सुना दिहल गईल जवना के बाद बक्सर के जेल मे उँहा के बन कई दिहल गईल , बाकी कहल जाला के जेकरा भीतर गुने गुन होखे ओकरा से त भगवान का शैतानो मानी जाला आ इहे भईल जब उँहा के बक्सर के जेल मे रहे वाला ओजुगा के हरेक कर्मचारी जेलर आ कैदी लोगन के प्रेमी आ दुलरुवा बनी गईना आ एकर नतीजा ई भईल की उँहा के तीन साल के बादे जेल से छुट गईनी । उँहा के तीन साल के एह जेल मे “अपुर्व रामायण” के सात खंड मे रचना भी कई देहनी।
महेन्दर मिसिर के लिखल तीन गो नाटक के अलावा महेन्द्र मंजरी, महेन्द्र बिनोद , महेन्द्र मयंक, भीष्म प्रतिज्ञा, कृष्ण गीतावली, महेन्द्र प्रभाकर, महेन्द्र रत्नावली, महेन्द्र चन्द्रिका, महेन्द्र कवितावली आदि के संगे संगे कई गो छोट मोट फुटकर रचना भी बाडी स बाकी इँहा मे ख्याति आ मशहुर अपना पुरबी गीतन के वजह से भईनी जवना वजह से इँहा के पुरबी गीतन के सम्राट भी कहल जाला । कलकत्ता, बनारस, मुजफ्फरपुर आदि जगह के तवायफ लोग महेन्दर मिसिर के आपन गुरु मानत रहे आ इनिके लिखल गीत के उ लोग गावत रहे। एक ओरि जहवा महेन्दर मिसिर जी के हारमोनियम, तबला, झाल, पखाउज, मृदंग, बांसुरी पे अधिकार रहे त ओजुगे, ठुमरी टप्पा, गजल, कजरी, दादरा, खेमटा जईसन कई गो राग पे एकाधिकार रहे आ एहि वजह से उँहा के हर रचना संगीत से भरल रहत रहे जवन केहु के जबान पे तुरंते चढि जाय! महेन्दर मिसिर के पुरबी गीतन मे बिछोह बिरह के संगे संगे रुमानी अहसास जवन लउकेला उ बहुत कम भोजपुरी के रचना मे देखे के मिलेला भा नाहिये मिलेला।
अईसे त महेन्दर मिसिर के लिखल गीत गांव गांव, घर घर लोगन के जुबानी रहल।
महेन्दर मिसिर अपना जीवन काल मे ही मशहुर आ लोगन के जुबान पे आ गईल रहले जिनका उपर दु गो उपन्यासो लिखाईल बा , एगो के नाव ह ” फुलसुंघी” ( कपिल पांडे जी के लिखल ) आ दुसरका ह ” महेन्दर मिसिर” ( रामनाथ पांडे जी के लिखल )।
ई जानकारी भईल हा की जौहर सफियाबदी के “पूर्वी के धाह”, पंडित जगन्नाथ के – “पूर्वी पुरोधा” जईसन रचना भी महेन्दर मिसिर जी के उपर लिखाईल बाडी स।
26 अक्टुबर 1946 के ढेलाबाई के कोठा पे बनल शिव जी के मन्दिर मे पुरबी के सम्राट , जेकरा गीतन से पथर भी मोम बनी के पघिले लागत रहल , एह दुनिया जहान के छोड के हमेशा हमेशा खातिर स्वर्ग सिधार गईलन। लेकिन उँहा के लिखल एक एक गीत आज भी भोजपुरी खातिर एगो अईसन धरोहर बा जवन कबो ओराये लायक नईखे आ जेकरा के भोजपुरिया लोग जन्म जन्मांतर तक आवे वाला कई जुग तकले कई पीढी ले सम्हार के राखी आ इयाद करी।
जितेंद्र द्विवेदी कहलन महेन्दर मिसिर अपना गीतन से खाली कल्पना ना बाकी यथार्थ के पहचान देले बानी एगो आवाज देले बानी एगो अँदाज देले बानी। अंगुरी मे डंसले बिआ नगिनिया रे, ए ननदी दिअवा जरा दे, सासु मोरा मारे रामा बांस के छिउंकिया , सुसुकति पनिया के जाय , पानी भरे जात रहनी पकवा इनरवा, बनवारी हो लागी गईले ठग बटवार, आधि आधि रतिया के पिहके पपीहरा, बरनिया भईली ना, मोरे अंखिया के निनिया बैरनिया भईली ना, पिया मोरे गईले सखी पुरबी बनिजिया से दे के गईले ना, एगो सुनगा खेलवना से दे के गईले ना , जईसन असंख्य गीतन पथरो के पघिला देबे के क्षमता महेन्दर मिसिर जी के गीतन मे बा जवना के आजुवो सुनला के बाद आदमी मंत्र मुग्ध हो जाला। आ आज के कई गो नामी कलाकार इँहा के एह कुल्हि गीतन के गा के उपर आईल बाडे।
यह सभा में आईल सब केहू इनका व्यक्तित्व आ जीवनी के साथे साथे इनके उपलब्धि के बारे में भी लोगों के बतावल त केहू इनकर गित भी गुनगानवल। एह सभा में जितेंद्र द्विवेदी, आशुतोष द्विवेदी, दीपू शुक्ला, नितिन नवीन त्रिपाठी, रितेश चौबे, ददन चौबे, सुधांशु पांडे, अंशु तिवारी, सुशील पाठक के साथ साथ है भोजपुरिया समाज के बहुतायत लोग उपस्थित भईल।