क्या राम मंदिर या बाबरी मस्जिद बनने से हिंदुस्तान की दरिद्रता दूर हो जायेगी?

अभय कुमार की रिपोर्ट —

देश के नामी पत्रकार, बुद्धिजीवी होने के नाते श्रीमान वेदप्रताप वैदिकजी के प्रति मेरे मन में काफी सम्मान की भावना होने के बावजूद दिनांक-30 अक्टूबर 2018 को ‘लोकमत समाचार’ में ‘राम मंदिर का अध्यादेश कैसा हो?’ शीर्षक उनका लेख पढ़कर मुझे उनकी बुद्धि पर खासा तरस आया। आपने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा- ‘मैं कहता हूँ कि वहां दुनिया के लगभग सभी प्रमुख धर्मों के तीर्थ क्यों न बनें? यह विश्व सभ्यता को भारत की अभूतपूर्व देन होगी। अयोध्या विश्व पर्यटन का आध्यात्मिक केंद्र बन जायेगी।’
मेरी यह समझ में नहीं आता कि जिस हिंदुस्तान में विश्व में सबसे ज्यादा मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर व अन्य धर्मस्थल तथा पंडे, मौलवी, पादरी, धर्मगुरु हैं, वह दुनिया का सबसे दरिद्र देश क्यों है ? अगर मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वारों व अन्य जितने भी धर्मस्थल हैं, उनमें पूजा-पाठ, नमाज, बलि, कुर्बानी, प्रार्थना, यज्ञ करने से ही मनुष्य का कल्याण होता तो फिर आज हिंदुस्तान विश्व का सबसे बड़ा, सुखी, समृद्धिशाली व ताकतवर देश होता, न कि दरिद्रतम देश। फिर भी भारतवर्ष के लोग मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर के नाम पर इतने उन्माद क्यों हैं? राम मंदिर बनने या बाबरी मस्जिद बनने से ही हिंदुस्तान का कायाकल्प होता तो इनके निर्माण में किसी को कोई आपत्ति नहीं होती, लेकिन जो हिंदुस्तान करोड़ों मंदिरों, मस्जिदों, गिर्जाघरों, गुरुद्वारों के होते हुए भी सैकड़ों वर्षों तक विदेशी शासकों का गुलाम रहा है, जिसकी आधी से ज्यादा आबादी आज भी भूखे पेट सोने को अभिशप्त है, उस हिंदुस्तान में राम मंदिर या बाबरी मस्जिद को लेकर इतना उन्माद, इतना हाहाकार क्यों? क्या वे इस बात की गारंटी ले सकते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर या बाबरी मस्जिद बनने से हिंदुस्तान की दरिद्रता दूर हो जायेगी, हिंदुस्तान का कायाकल्प हो जायेगा? अगर नहीं तो फिर राम मंदिर-बाबरी मस्जिद के निर्माण को लेकर इतना हो-हल्ला क्यों? आम आदमी की बात और है, आप सरीखे विद्वान, बुद्धिमान लोग अगर बेसिर-पैर की बातें लिखकर समाज को गुमराह करते हैं तो फिर पत्रकारिता की वृत्ति के प्रति कोफ्त पैदा होने लगती है।
मनुष्य के दो सबसे बड़े शत्रु हैं- पहला लोभ और दूसरा भय। सृष्टि के प्रारंभ से ही मुट्ठी भर चालाक, धुरंधर, शैतान, लालची स्वभाव के लोग मनुष्य की इन दो कमजोर नब्जों के जरिये मानव जाति का शोषण करते आ रहे हैं। मनुष्य जाति के शोषण का सबसे भयंकरतम माध्यम है धर्म। सृष्टि ने हमें हिंदु, मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध के रूप में नहीं बल्कि मनुष्य के रूप में जन्म दिया है। लेकिन मानवता के दुश्मनों ने हिंदु, मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि हजारों धर्मों की सृष्टि कर मानव जाति के टुकड़े-टुकड़े कर दिये हैं और आज समूची मानव जाति धर्म रूपी हैवानियत के शिकंजे में लहुलुहान हो रही है।
धरती हमारी माता है और हम उसकी संतान हैं। मनुष्य धरती की छाती से उत्पन्न जल, अन्न तथा उसके वायुमंडल से ऑक्सीजन ग्रहण कर जीवन धारण करता है, लेकिन अपने क्षुद्र स्वार्थों की खातिर उसी धरती माता को विध्वस्त करने पर तुला हुआ है। हर मां की यह कामना होती है कि उसकी संतान सुख, शांति, समृद्धि से रहे तथा उसके जीवन में कभी कोई आपत्ति-विपत्ति न आये। हमारी धरती माता का भी सिस्टम इस प्रकार बना है कि अगर मनुष्य सृष्टि (वास्तु) के नियमों के अनुसार गृह निर्माण करे और सृष्टि द्वारा प्रदत्त मन की शक्ति का उपयोग करे तो उसे न सिर्फ जीवन भर सुख, शांति, समृद्धि हासिल होती है बल्कि उसे किसी प्रकार की अनहोनी का शिकार भी नहीं होना पड़ता।
अफसोस इस बात का है कि चंद क्षुद्र स्वार्थी लोग मानव जाति को इस सत्य से विमुख कर स्वरचित धर्मों और गुरुओं की सेवा-साधना करने से उन्नति होने की झूठी दिलासा और उनकी अवहेलना करने पर नरक, दोखज में जाने का भय दिखाकर न सिर्फ उसका शोषण करते आये हैं, बल्कि उन्होंने समूची मानव जाति को पंगु बनाकर रख दिया है। दुनिया का हर धर्म यही कहता है कि तुम्हारे हाथ में कुछ नहीं, सभी कुछ ऊपरवाला अल्ला, गॉड, भगवान करता है, जबकि हकीकत यह है कि दुनिया में भगवान, अल्ला, गॉड नाम की कोई चीज नहीं है। कबीर ने कहा था- ‘पाथर पूजै हरि मिले तो मैं पूजूँ पहाड़।’ असली भगवान, गॉड, अल्ला प्रकृति प्रदत्त शक्ति के रूप में खुद मनुष्य के मन में हैं, लेकिन दुनिया के सभी धर्मगुरु प्रकृति प्रदत्त शक्ति को झुठला कर अस्तित्वहीन भगवान, अल्ला, गॉड पर विश्वास करने की सलाह देकर समूची मानव जाति को दिग्भ्रमित करते आये हैं। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि दुनिया में धर्म के नाम पर ही सबसे ज्यादा अपराध, हिंसा, आतंकवाद व विद्वेष फैलाने सरीखी अमानवीय घटनाएं संघटित होती आई हैं।
दुनिया में जितने मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वारे व अन्य धर्मस्थल हैं, उनकी संपदा को बेचकर अगर उन्हें मानव कल्याण के कार्य पर खर्च कर दिया जाये तो मैं समझता हूँ कि दुनिया में एक भी दरिद्र, भूखा नहीं रहेगा और दुनिया में अपराध भी न्यूनतम हो जायेंगे। मानव जाति को धर्म तथा धर्मगुरुओं के शिकंजे से आजाद करना वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है, न कि राम मंदिर या बाबरी मस्जिद का निर्माण।
सृष्टि ने मनुष्य के मन में इतनी शक्ति प्रदान की है कि दुनिया का कोई भी काम उसके लिए असंभव नहीं। वास्तु के नियमानुसार गृह निर्माण करने तथा मन की शक्ति का उपयोग करने से उसे जीवन में अकल्पनीय सुकून, शांति तथा प्रगति की प्राप्ति होती है। जबकि मनुष्य द्वारा सृजित भगवान, अल्ला, गॉड और मंदिर, मस्जिद, गिरजाघरों का मनुष्य के जीवन में कोई प्रभाव नहीं होता। सृष्टि की सत्ता की अनदेखी कर युग-युग से धर्म और क्षुद्रस्वार्थी धर्मगुरुओं की अंध भक्ति करने की वजह से आज हिंदुस्तान की जनता दरिद्रता का जीवन बसर करने को अभिशप्त है। अस्तित्वहीन अल्ला, भगवान, गॉड की प्रार्थना, पूजा, इबादत में अपना जीवन होम करने वालों को शून्यता के अलावा और भला क्या हासिल होने वाला है ? इसलिए आज मुट्ठी भर लोगों के पास संसार की अधिकांश संपदा एकत्रित हो गई है, जबकि अधिकांश लोगों को दरिद्रता का जीवन बसर करना पड़ रहा है।
देश के पूर्वोत्तर के लोग भी सदियों से प्रकृति के नियमों के विपरीत गृह निर्माण करते आये हैं, जिसकी वजह से यह क्षेत्र युगों से युद्ध, आतंकवाद व नकारात्मक सोच से त्राहिमाम करता रहा है। पूर्वोत्तर क्षेत्र को हिंसा, उग्रवाद, पिछड़ेपन व अंधविश्वास से मुक्त कर इलाके की जनता का जीवन स्तर सुधारने के लिए हम विगत 23 सालों से लोगों को घर-घर जाकर प्रकृति (वास्तु) के नियमानुसार गृह निर्माण व मन शक्ति के प्रयोग की सलाह देने की मुहिम में जुटे हुए हैं और अब तक 16,000 परिवारों को नि:शुल्क वास्तु सलाह दे चुके हैं। हमने कई स्कूल, कॉलेजों, मंदिरों का भी वास्तु दोष दूर करवाया है, जिसके बाद इनकी काफी उन्नति हुई है। अगर हिंदुस्तान के लोग धर्म के नाम पर जारी ढोंग से खुद को मुक्त कर मन की शक्ति का प्रयोग और सृष्टि (वास्तु) के नियमानुसार गृह निर्माण करने लगें तो फिर वो दिन दूर नहीं होगा, जब हिंदुस्तान विश्व का सबसे सुखी, समृद्ध व शांतिपूर्ण देश बन जायेगा। आप सरीखे बुद्धिजीवी ऐतिहासिक तथ्यों का अध्ययन व आंकलन कर धर्म की अवास्तविकता से देश की जनता को अवगत करायें, तभी आपकी पत्रकारिता की सार्थकता होगी।

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